DIGITAL DESK JHARKHAND:- देवघर। सुरैया हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका थीं। उन्होने 40वें और 50वें दशक में हिन्दी सिनेमा में अपना मुख्य योगदान दिया। उन्होंने अदाओं में नज़ाकत, गायकी में नफ़ासत की मलिका ने अपने हुस्न और हुनर से हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नई इबारत लिखी। उनकी दादी देव आनंद साहब को पसंद नहीं करती थी। इसलिए उन्होने ताउम्र शादी नहीं करने का फैसला किया। उनकी मृत्यु 31 जनवरी, 2004 को मुंबई में हो गई। मौके पर स्थानीय ओमसत्यम इंस्टीट्यूट ऑफ फिल्म, ड्रामा एंड फाइन आर्ट्स के निदेशक, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा- सुरैया का जन्म 15 जून, 1929 को गुजरांवाला, पंजाब में हुआ था। वे अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं।
उनका पूरा नाम सुरैया जमाल शेख़ था। उन्होंने हालांकि संगीत की शिक्षा नहीं ली थी लेकिन आगे चलकर उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ एक अच्छी गायिका के रूप में भी बनी। उन्होंने अपने अभिनय और गायकी से हर कदम पर खुद को साबित किया है।
उनकेे फ़िल्मी करियर की शुरुआत बड़े रोचक तरीक़े के साथ हुई। मशहूर खलनायक जहूर जी सुरैया के चाचा थे और उनकी वजह से 1937 में उन्हें फ़िल्म ‘उसने क्या सोचा’ में पहली बार बाल कलाकार के रूप में अभिनय करने की मौका मिला। 1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान वे मोहन स्टूडियो में फ़िल्म ‘ताजमहल’ की शूटिंग देखने गईं तो निर्देशक नानूभाई वकील की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने सुरैया को एक ही नज़र में मुमताज़ महल के बचपन के रोल के लिए चुन लिया। इसी तरह संगीतकार नौशाद ने भी जब पहली बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया की आवाज़ सुनी और उन्हें फ़िल्म ‘शारदा’ में गवाया। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद नूरजहाँ और खुर्शीद बानो ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली, लेकिन सुरैया यहीं रहीं। एक वक़्त था, जब रोमांटिक हीरो देव आनंद सुरैया के दीवाने हुआ करते थे। लेकिन आखिर में भी यह जोड़ी वास्तविक जीवन में जोड़ी नहीं पाई।
क्योंकि सुरैया की दादी देव साहब पसंद नहीं करती थी। लेकिन सुरैया ने भी अपने जीवन में देव साहब की जगह किसी और को नहीं आने दिया। ताउम्र उन्होंने शादी नहीं की और मुंबई के मरीनलाइन में स्थित अपने फ्लैट में अकेले ही ज़िंदगी व्यतीत करती रही।
देव आनंद के साथ उनकी फ़िल्में जीत और दो सितारे काफी प्रसिद्ध रही । ये फ़िल्में इसलिए भी यादों में ताजा रहीं क्योंकि फ़िल्म जीत के सेट पर ही देव आनंद ने सुरैया से अपने प्यार का इजहार किया था, और दो सितारे उन दोनों की आख़िरी फ़िल्म थी। खुद देव आनंद ने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में सुरैया के साथ अपने रिश्ते की बात कबूली है। वह लिखते हैं कि सुरैया की आंखें बहुत ख़ूबसूरत थीं। वे इसके साथ ही एक बड़ी गायिका भी थीं। हां, मैंने उनसे प्यार किया था। इसे मैं अपने जीवन का पहला मासूम प्यार कहना चाहूंगा। अभिनय के अतिरिक्त सुरैया ने कई यादगार गीत भी गाए, जो अब भी काफ़ी लोकप्रिय है। इन गीतों में, सोचा था क्या मैं दिल में दर्द बसा लाई, तेरे नैनों ने चोरी किया, ओ दूर जाने वाले, वो पास रहे या दूर रहे, तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी, मुरली वाले मुरली बजा आदि शामिल हैं। 1948 से 1951 तक केवल तीन साल के दौरान सुरैया ही ऐसी महिला कलाकार थीं,
जिन्हें बॉलीवुड में सर्वाधिक पारिश्रमिक दिया जाता था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी सुरैया की महानता के बारे में कहा था कि उन्होंने ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ की शायरी को आवाज़ देकर उनकी आत्मा को अमर बना दिया।